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शिव का सार (कविता)

गहन क्लेश में सुख का आगार
योग से प्राप्य शिव का सार।

बृहद क्षेत्र में व्यापक आकाश सर,
कल्प दिए सरलता से संवत्सर।
निरंजन अरूप यद्यपि सर्वाधार।

ज्ञान दीप्त आचरण बनकर,
प्राण दीर्घ विवरण बनकर।
सर्वाकर उत्पत्तिकर्ता वह निराकार।

प्रण पर उपकार ही शिव का,
जीवन भी उपहार ही शिव का।
शिवमय शिव धुन गाकर शिवॐकार।

गहन क्लेश में सुख का आगार,
योग से प्राप्य शिव का सार।


लेखन तिथि : 8 मार्च, 2024
            

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