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श्रेष्ठ कौन (कविता)

मानव श्रेष्ठ नहीं है कोई,
श्रेष्ठ बनाते हैं गुण-अवगुण।
जिसको दस ने श्रेष्ठ है समझा,
वह बन जाता उनका झंडा।
पर जैसे ही मान है घटता,
वह बन जाता खाली डंडा।
मानव श्रेष्ठ नहीं है कोई,
श्रेष्ठ बनाते हैं गुण अवगुण।

श्रेष्ठ नहीं बन जाते सारे,
कितने बहुमत हैं पीछे तुम्हारे।
क्या धन मान भी है पास में,
ये फिर कड़के खाली हाथ के।
जितनी अधिक है ख़ूबी तुम में,
उतने श्रेष्ठ हो तुम सब में।
मानव श्रेष्ठ नहीं है कोई,
श्रेष्ठ बनाते हैं गुण अवगुण।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 22 अप्रैल, 2001
            

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