सोने की एक लता तुलसी बन क्यौं करणों सु न बुद्धि सकै छ्वै।
केशवदास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्रीफल से ब्बै॥
फूलि सरोज रह्यो तिन ऊपर रूप निरूपत चित्त चलै च्वै।
तापर एक सुवा शुभ तापर खेलत बालक खंजन के द्वै॥
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