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सोने से पहले (कविता)

सोने से पहले मैं सुबह के अख़बार समेटता हूँ
दिन भर की सुर्ख़ियाँ परे खिसका देता हूँ
मैं अत्याचारी तारीख़ों और हत्यारे दिनों को याद नहीं रखना चाहता
मैं नहीं जानना चाहता कितना रक्त बहाकर बनाए जा रहे हैं राष्ट्र
मैं वे तमाम तस्वीरें औंधी कर देता हूँ
जिनमें एक पुल ढह रहा है कुछ सिसकियाँ उठ रही हैं
एक चेहरा जान बख़्श देने की भीख माँग रहा है
एक आदमी कुर्सी पर बैठा अट्टहास कर रहा है

क्या रात भर मुझे एक तानाशाह घूरता रहेगा
रात भर चलते हुए मुझे दिखेंगे घरों से बेदख़ल
एक अज्ञात उजाड़ की ओर जाते परिवार
क्या रात भर मेरा दम घोटता रहेगा धरती का बढ़ता हुआ तापमान
दिमाग़ में दस्तक देता रहेगा बाज़ार
सोने से पहले मैं किताबें बंद कर देता हूँ
जिनमें पेड़ पहाड़ मकान मनुष्य सब काले-सफ़ेद अवसाद में डूबे हैं
और प्रेम एक उजड़े हुए घोंसले की तरह दिखाई देता है

सोने से पहले मैं तमाम भयानक दृश्यों को बाहर खदेड़ता हूँ
और खिड़कियाँ बंद कर देता हूँ
सिगरेट बुझाता हूँ चप्पलें पलंग के नीचे खिसका देता हूँ
सोने से पहले मैं एक गिलास पानी पीता हूँ
और कहता हूँ पानी तुम बचे रहना
एक गहरी साँस लेता हूँ
और कहता हूँ हवा तुम यहाँ रहो
मेरे फेफड़ों और दीवारों के बीच
सोने से पहले मैं कहता हूँ
नींद मुझे दो एक ठीक-ठाक स्वप्न।


रचनाकार : मंगलेश डबराल
            

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