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स्त्री मन (कविता)

स्त्री वस्तुतः कौन
पाषाण मूर्त रूप में
विलोकित क्यों...
प्रायः पुरूष में
प्राण प्रतिष्ठित
दुर्वासा मुनि के
कोप फलस्वरूप
अभिशप्त स्त्री मन
होता नित रूपांतरित
प्रस्तर रूप में
सृजित मन...
शापित अहल्या में,
समय परिवर्तन
पुरुष में विद्यमान
पुरुषोत्तम राम का
स्नेहिल स्पर्श...
देता पुनरूज्जीवन
फूँक देता प्राण
स्त्री मन हो सजग
बहता जीवनधारा में,
दुर्वासा सा कोप
कभी राम सा स्नेह
एकान्तरता से...
अविरत गतिमान
युगों-युगों तक,
यह प्रत्यंतर दशा
स्त्री मन को
अंततः बना देती...
एक कठोर शिला
कोई स्पर्श अब
नहीं करता द्रवित,
प्रस्तर रूपी अहल्या
स्त्री मन में समाहित
विलुप्त रहती मुस्कानों में
रिश्तो के तानों-बानों में।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 10 मार्च, 2022
            

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