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सुबह-सवेरे (कविता)

सुबह-सवेरे आँगन को मेरे चिड़िया,
चूँ-चूँ कर चहकाती है।
भोर हुआ उठ जाग मुसाफ़िर,
क्यूँ निदिया तुझे सताती है।।
बीती रात स्याह अँधियारी,
नवप्रभात आनंद पान करो।
भूलो बुरे स्वप्नो, तजो निराशा,
ईश स्तुति जाप करो।।
आशाओ के दीप जलाओ,
नमो विकास विश्वास करो।
जन्मभूमि अर्पण,
तन-मन-धन,
नई पीढ़ी नींव भरो।।
सुबह-सवेरे पेड़ो की डाली,
गौरैया चहकाती है‌।
तिनका-तिनका जोड़ घौसला
बेजोड़ बनाती है।
जीवन-पथ-राह के कंटक,
कर्मयोग से दूर करो।
ईश आशीष सदा रहेगा,
जो ग़रीब का पेट भरो।।
मानव जीवन वरदान मिला है,
इसका सही प्रयोग करो।
परमार्थ जीवन आनंद है,
इसका तुम भोग करो।।
सुबह-सवेरे आँगन को मेरे,
चिड़िया चूँ-चूँ कर चहकाती है।
भोर हुआ उठ जाग मुसाफ़िर,
क्यूँ निदिया तुझे सताती है।।
माता-पिता गुरूजन,
ओर बड़ों का,
सदा सम्मान करो।
अग्रजनो की सीख मानकर,
जीवन भर आनंद करो।।
रोज़ समय का रखो ख़्याल,
बेकार नही तुम जाने दो।
कोयलिया अपने बच्चों को निसदिन,
यह पाठ पढ़ाती है।।
सुबह-सवेरे बागों में कोयल, डाल-डाल फुदकती है।
अपनी मधुर कूंक वोली से, हिय स्पंदन कर जाती है।।
जल ही जीवन है मछली का,
बाहर कभी न आती है।
अपनी सीमा में रहना सदा,
जल महत्व बताती है।।
कार्बन ले पेड़ देता ऑक्सीजन,
प्राण-वायु-जीव।
बुराई छोड़ो अच्छाई पकड़ो,
मानो इसकी यह सीख।।
सुबह-सवेरे आँगन को मेरे चिड़िया,
चूँ-चूँ कर चहकाती है।
भोर हुआ उठ जाग मुसाफ़िर,
क्यूँ निदिया तुझे सताती है।।


लेखन तिथि : 28 दिसम्बर, 2016
            

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