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सुभाष चंद्र बोस (कविता)

जानकीनाथ और प्रभावती के पुत्र, सुभाष चंद्र थे स्वाधीनता सेनानी,
आओ आज सुनाऊँ सबको मैं, सुभाष बोस की कहानी।
माता पिता की चौदह संताने, सुभाष थे नौवीं संतान,
आज हैं उनका पावन जन्मदिन, देश कर रहा जय जय गान।

23 जनवरी, 1897 का दिन था, ओड़िसा के कटक में हुआ था जनम,
जन्म से ही साहसी थे, राष्ट्र को स्वतंत्र करने का लिया वचन।
अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ने की ख़ातिर, किया "आज़ाद हिन्द फ़ौज" का गठन,
"तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा" इस नारे का हो गया प्रचलन।

लोग कहते थे उन्हें नेताजी, "जय हिन्द" का दिया उन्होंने नारा,
बच्चे बच्चे की ज़ुबान चढ़ गया यह, बन गया राष्ट्र का नारा।
21 अक्टूबर 1943 के दिन सुभाष ने, बनाईं भारत की अस्थायी सरकार,
उनके इस कार्य में दे रही थी समर्थन, 11 देशों की सरकार।

जापान ने दिया इस सरकार को, अंडमान और निकोबार का नियंत्रण,
ख़ुद सुभाष गए इस द्वीप समूह पर, किया इनका नामकरण।
1944 में किया अंग्रेजों पर आक्रमण, कुछ प्रदेशों को कराया मुक्त,
4 अप्रैल से 22 जून तक लड़ा उन्होंने, कोहिमा का घमासान युद्ध।

18 अगस्त 1945 को हुई, सुभाष बोस की विमान दुर्घटना,
नेताजी अभी भी है जीवित, यही है राष्ट्र की धारणा।
अपनी राष्ट्र भक्ति से उन्होंने, रच दिया अप्रतिम इतिहास,
खड़े होकर अंग्रेजों के विरुद्ध, दिखाया अपना साहस और विश्वास।

कहाँ गए सुभाष, क्या हुआ उनका, इस बात का किसीको नहीं पता,
विमान दुर्घटना के बाद मिले न कभी, जाने कहाँ हो गए लापता।
राष्ट्र को स्वतंत्र कराने वाले, थे यह महान ख़ुद्दार अभिमानी,
अपनी जननी से भी ऊपर थी, उनके लिए यह भारत जननी।

आज उनके जन्मदिन पर, देश कर रहा उनका सुमिरन,
आज इस पावन दिन पर, राष्ट्र कर रहा सुभाष को नमन।
आओ आज करें इस शुभ दिन, हमारे नेताजी का वंदन,
आओ शत् शत् करें उन्हें प्रणाम, चढ़ाकर श्रद्धा के सुगन्धित सुमन।


लेखन तिथि : 23 जनवरी, 2022
            

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