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सुन री हवा तू धीरे चल (गीत)

सुन री हवा तू धीरे चल
उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है...

सज सँवरकर निकली है वो
यहाँ सारा चमन महक रहा है।

सौन्दर्य ऐसे सोलह शृंगार जैसे
मानो चाँद ज़मीं पर चमक रहा है।

सुन री हवा तू धीरे चल
उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है...

माथे बिंदियाँ आँख में अंजन
नाक में नथुनीं हाथ में कंगन।

कान में झुमका चाल में ठुमका
देख उसे हर कोई बहक रहा है।

गालो की लाली होठों की प्याली
उसके चेहरे पर नूर बरश रहा है

सुन री हवा तू धीरे चल
उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है...

जिसनें देखा जी भर के
वो बचा है यारो मर मर के।

साँस की सुरभि बाल में गजरा
चंदन सा बदन महक रहा है।

देख पतित हुआ वो पावन
उसका यौवन इतना चहक रहा है।

सुन री हवा तू धीरे चल
उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है...

गुलशन में गुल खिल जाए
जब उसके चेहरे पर मुस्कान आए।

ऊपर से ये दूध दशन
जैसे अब्धि में मुक्ता चमक रहा है।

तारीफ़ें सारी कम लगती है
जितनी जो भी कर रहा है।

सुन री हवा तू धीरे चल
उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है...


लेखन तिथि : 14 जून, 2021
            

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