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स्वतन्त्रता आव्हान (कविता)

मातृभूमि की पावन माटी, का अब तिलक लगाना है,
खोई गौरव जग जननी का, फिर से अलख जगाना है l

सोन चिरैया की ख़ातिर, मरदानी बन रण दौड़े थे,
मर मिटने वाले वीरो का, शुर वैभव हम दोहराएँगे।
क्रांति शंख बजाया जिसने, गाथा उनका ही गाना है,
मातृभूमि की पावन माटी का, अब तिलक लगाना हैl

प्रकृति भी करवट है बदली, ज्ञान भाग्य भी जागा है,
छोड़ निंद्रा चिर शिला की, संगठन का शीश उठाएँगे।
क्रांति का शुभ पर्व लिए, अग्निपथ बिगुल बजाना है,
मातृभूमि की पावन माटी का, अब तिलक लगाना है।

दशो दिशा में मुक्त कंठ से, भारत जयकार सुनाना है,
वीर शौर्य है अमिट अमर, रक्त में सबके भरना होगा।
समय चूक न जाए युवाओ, माटी का क़र्ज़ चुकाना है,
मातृभूमि की पावन माटी का, अब तिलक लगाना है।

झाँसी से क्रांति उदित हुआ, अवंति किला सम्हाला था,
हल्दी घाटी महाराणा की, शिवजी का भगवा लहराएँगे।
समता, ममता, न्याय धरम का, नव राष्ट्र सुगम बनाना है,
मातृभूमि की पावन माटी का, अब तिलक लगाना है।


लेखन तिथि : 8 अगस्त, 2022
            

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