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तू ख़ुद में प्रेम बन जा (कविता)

मन में हैं जो पाले तू,
मन से मन में भर जा तू,
क्यों कहता है पल-पल प्यार है उससे
इसके मायने ज़्यादा है कुछ ख़ास नहीं
यहाँ ना मिलेगी स्वर्ग से ऊँचाईया,
तू ख़ुद में प्रेम बन जा।
जब होगा तू प्रेम से भरा
ख़ूबसूरती तेरी ख़ूब झलकेगी,
तू बेहतर से बेहतरीन हो जा,
यूँ तेरी प्रतिभा, समझ को प्रकट कर जा
तेरा दिल सहज सरल कर
एक प्रेम भरा इंसान बन जा
तू ख़ुद में प्रेम बन जा।
सच में मौज है ख़ूब, तू बेफ़िक्र बन जा
सोच बे सोच कर तू तनाव से दूर हो जा
गहरी है जड़ आत्मविश्वास की
तू कर पटल पर एहसास
दिल से दिल मिला जा
तू ख़ुद में प्रेम बन जा।
ख़ूब है मिलता विरोध आत्मा से
जहाँ सुकून पाता शरीर हो
करुणा दया सेहत सब महसूस कर जा
फ़र्क़ ना पड़े तेरे कण-कण को
चींटी हो या हाथी,
बस मीठा रसीला दयावान एक जग बन जा
लगातार निरंतर होता है प्रेम जहाँ,
वह तू एक प्रेरणा बन जा
तू ख़ुद में प्रेम बन जा।


लेखन तिथि : 10 जनवरी, 2022
            

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