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तुम ही हो (कविता)

तुम ही अरमान हो मेरी,
तुम ही जान हो मेरी।
तुम ही दुश्मन, तुम ही दोस्त,
तुम ही सारा जहान हो मेरी।।

मेरे आँखों का तारा तुम ही हो,
मेरे स्वप्नों का सितारा तुम ही हो।
ज़ख़्मी दिलों का सहारा तुम ही हो,
चाँदनी रातों का नज़ारा तुम ही हो।।

तुम ही तुम हो इस जहाँ में,
मुझे कोई और दिखता नही।
कटु शब्दों के तार से भी,
दिलों का तार कभी टूटता नही।।

मंज़िल पाना आसान हो जाता,
जो तेरा साथ मुझे मिल जाता।
मेरे चेहरे पर भी मुस्कान होती,
मैं भी गीत ग़ज़ले गुनगुनाता।।

भटकते-भटकते तेरी गलियों में,
चाहे पाँव मेरा छिल जाए।
सब कुछ त्याग दूँगा मैं,
मुझे बस प्यार तेरा मिल जाए दिल।।


लेखन तिथि : 25 मार्च, 2020
            

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