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उड़े हौसले की उड़ान (कविता)

हर क़दम मंज़िल खड़ी है,
तुम चलो दो क़दम।
जो ठहरा नहीं चलता गया,
मिल गया उसे हमदम।

रुकना नहीं झुकना नहीं,
आगे रखो हर क़दम।
मंज़िल की ओर देखते रहो,
जब तक है साँसों में दम।

हौसलों से होती है उड़ाने,
कहाँ हैं पंखों में दम।
हवाओं रुख़ मोड़ देती हैं,
जब इरादे हो भरकम।

रास्ता देती है चट्टानें भी,
हथियार हो आत्मसंयम।
समुद्र लहर बन जाता है,
तूफ़ानी हो जब दमख़म।


रचनाकार : आशाराम मीणा
लेखन तिथि : 1 सितम्बर, 2021
            

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