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उनकी अदाएँ उनके मोहल्ले में चलते तो देखते (ग़ज़ल) Editior's Choice

उनकी अदाएँ उनके मोहल्ले में चलते तो देखते,
वो भी कभी यूँ मेरे क़स्बे से गुज़रते तो देखते।

बस दीद की उनकी ख़ाहिश लेकर भटकता हूँ शहर में,
लेकिन कभी तो वह भी राह गली में दिखते तो देखते।

केवल बहाना है यह मेरा चाय पीना उस चौक पे,
सौदा-सुलफ़ लेने वह भी घर से निकलते तो देखते।

हर रोज़ उनको बिन देखे ही लौट आने के बाद मैं,
अफ़सोस करता हूँ कि थोड़ा और ठहरते तो देखते।

मैं बा-अदब ठहरा था जब गुज़रे थे वो मेरे पास से,
ऐ 'अर्श' उस दिन ही गर आँखें चार करते तो देखते।


लेखन तिथि : 8 जून, 2021
अरकान: फ़ेलुन फ़ऊलुन फ़ेलुन फ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन
तक़ती: 22 122 22 222 1222 212
            

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