हे युद्धभूमि के मतवालों,
तुम उठो गरल विष के प्यालों।
है युद्धभूमि ललकार रही,
निज जीवन राह पुकार रही।
फूको तुम बिगुल विजय वाला,
उर में डालो पुष्पित माला।
कर लो शस्त्रों का शस्त्रगार,
अक्षौहिणी सेना हो अपार।
तुम स्वयं सारथी बन जाओ,
तुम विजय आरती बन जाओ।
मंथन वाला तुम मन खोलो,
तुम सिंह गर्जना सम बोलो।
निज समर्थ्यता से युद्ध करो,
निज वाणी को तुम शुद्ध करो।
वैरी यह तुम्हारा स्वयं है मन,
निज अंतर्मन का करो हनन।
तुम क्रोध, ईर्ष्या को मारो,
तुम आत्म स्वार्थ को संहारो।
पीड़ाओं से तुम नहीं डरो,
तुम स्वयं के अंदर जोश भरो।
जब चहुँ ओर उजाला छाएगा,
वह विजय दिवस तब आएगा।
तुम स्वयं प्रमाण वहाँ लिखना,
तुम विजय चिन्ह में ही दिखना।
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