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वीर जवान (कविता)

इस पार खड़ा तैयार खड़ा,
शत्रु तेरे द्वार खड़ा।
आने दे घुसपैठी को,
लहू में उफान लिए हूँ खड़ा।
चैन से वो सो सके,
बिना नींद के मैं हूँ खड़ा।
लड़ने को खड़ा, ज़िद पर अड़ा,
भारत माता की ख़ातिर,
तिरंगे में लिपटने को हूँ खड़ा।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 10 अप्रैल, 2007
            

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