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विजयादशमी और दशानन (कविता)

जल गया रावण भूतल पर,
जीवंत रहा ह्रदय के भीतर।
झाडू-बुखारी हर घर-आँगन,
कूड़ा-करकट हर सड़क पर।।

जल रहा दशानन गाँव-शहर,
जीवंत रह गया चहुँ मनस्थल।
बेटी पढ़ाओ बचाओ सिर्फ़ नारा,
दामिनी चीत्कार दाग दामन पर।।

जल रहा लंकेश धूँ-धूँ कर,
पनप रहा पाप भूतल पर।
भाईचारा निपटाया ईर्ष्या-द्वेष ने,
त्यौहार रह गए रस्मी प्रतीक भर।।

जल गया है दानव अधिपति,
रह गए जेएनयू, एएमयू संदेश।
बाबर के संताप से है पीड़ित,
सुप्रीम खोज जन्मभूमि नरेश।।

जल गया वीर विद्वान मायावी,
खेत रहे दुष्ट भाई-सुत-सेनानी।
बच गए धर्मज्ञ, भक्त विभीषण,
रामयण सारांश तुलसी संदेश।।

जल गई अट्टालिका स्वर्ण,
रह गए खंडहर चीख नरमुंड।
रक्त नहाई धरा जी भर कर,
युद्ध परिणाम विनाश पथ शेष।।

दहल गई धरा प्रकृति कोप से,
बह गए, उजड़ गए, मेघ ताप से।
अंधढ़ दोहन धरा विकास चाह,
अपने पैरों ख़ुद कुल्हाड़ी घाव अनेक।।

मचल गई धरती असंतुलन से,
फूले न समाये भौतिक सुख से।
अंह में डूबे हुए किरदारों के झुंड,
बच नही सकते ईश के शाप से।।

उन्नीसवीं सदी में सूर्योदय हुआ,
जाग रहा विश्व भंयकर आगम से।
नमों ने हुंकार विश्व पटल में भरी,
शायद फिर से सूर्योदय होगा पूरब से।।

आओ हम सब भी जलाए मन दशानन,
'कर भला तो हो भला' को चिरतार्थ करें।
प्रण करें कि किसी बेटी को नहीं रोने देगें,
विजयादशमी पर्व पर अजेय मनन संदेश।।


लेखन तिथि : 8 अक्टूबर, 2019
            

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