वक़्त बहुत ही झूठा निकला,
ख़ाक मनाएँ रूठा निकला।
अर्जुन की जब बात चली तो,
देखो द्रोण अँगूठा निकला।
कविताओं में बात बड़ी है,
चिंतन वाह निजूठा निकला।
जब-जब नाम-पता पूँछा तो,
उनका काम अनूठा निकला।
आज सियासत पर क्या बोलें,
रहबर यार अपूठा निकला।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें