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वक़्त सुन कुछ बोलता है (कविता)

हर क़दम निर्भय बढ़ाना,
दृष्टि मंज़िल पर गड़ाना,
राह की उलझन अमित से
मन विकल क्यों डोलता है?
वक़्त सुन कुछ बोलता है।।

बीच नद तूफ़ान आए,
शत्रु असि कर तान आए,
विघ्न आ पथ में मनुज के
धैर्य-बल को तौलता है।
वक़्त सुन कुछ बोलता है।।

छुट गया जो भी रुका है,
हार विपदा से झुका है,
यह धरा उसकी नहीं जो
अश्रु में तन घोलता है।
वक़्त सुन कुछ बोलता है।।

शान्त अम्बुधि का किनारा,
शान्त, नीरव नीर-धारा,
ज्वार की बेचैनियों में
भी न सागर खौलता है।
वक़्त सुन कुछ बोलता है।।


लेखन तिथि : 2020
            

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