अब ये मत पूछना, ऐ काँटों!
कि कौन हैं हम।
मामूली मत समझना हमें,
गर मौन हैं हम।।
मोहब्बत के मकरन्द में सने हैं,
वो फूल हैं हम।
तुम्हारे घर, मंदिर की शोभा के लिए भी
हम ही तो बने हैं।।
वरमाला में गुथे हों,
या पिरोए हों किसी अर्थी में।
वो फूल हैं हम,
जो हर किसी की ख़ुशी में ही ख़ुश रहे हैं।।
तुम ज़िन्दो को खुलकर रोने भी नहीं देते,
मु्र्दों को भी हँसाते रहे हैं हम।
वो फूल हैं हम,
कमज़ोर नहीं, भले कोमल ज़रूर हैं हम।।
मामूली मत समझना हमें ऐ काँटों!
तुम्हारे ही बीच तुम्ही से टकराएँगे।
वो फूल हैं हम,
हर दर्दीली चुभन सहकर भी तुम्हारा साथ निभाएँगे हम।।
ज़ख़्म देते रहे हो तुम,
उन्हें हम सकते आए हैं प्यार के पावन धागे से।
वो फूल हैं हम,
हमें बिछाते हैं राह पर लोग, हटाकर तुम्हें आगे से।।
मन्दिरों में चढाए जाते हैं हम,
गुलदस्तों में सजाए जाते हैं।
वो फूल हैं हम,
पड़ जाते हैं गले, तो काँटे ख़ुद लजाए जाते हैं।।
भय का पर्याय हो तुम, ऐ काँटो!
आनन्द का प्रतीक हैं हम।
वो फूल हैं हम,
तुम दर्द की दुर्गन्ध तो, सुकून की सुगन्ध फैलाते हैं हम।।
अब मत पूछना, ऐ काँटों!
कि कौन हैं हम।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें