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युद्ध (कविता)

दाँव पर लग रही मानवता, युद्ध का हुआ आग़ाज़,
बमों और मिसाइलों के बीच, आत्मा करें करुण आवाज़।
परिवार उजड़ रहे, बच्चे बिलख रहे होकर के अनाथ,
समझ न पा रहा हूँ युद्ध से, किसको क्या लगेगा हाथ?

किसी पत्नी की माँग सूनी हुई, किसी बहन का खोया भाई,
बुढ़ापा हो गया बेसहारा, किसी की टूट गयी कुड़माई।
बड़ी अमानवीय युद्ध की विभीषिका, मचा हर ओर हाहाकार,
इंसान इंसान का बना है दुश्मन, अजीब है यह प्रतिकार।

देशों के बीच हो रही तनातनी, वर्चस्व की हो रही लड़ाई,
देश बंट रहे विरोधी गुटों में, आपस में बढ़ रही है खाई।
तृतीय विश्व युद्ध की हो रही आशंका, बुरे बहुत है आसार,
जाने कैसी हो गई मानसिकता, इंसान कर रहा अपना ही संहार।

अँधकार की बदलि छाई, काले बादल छा रहे घोर घनघोर,
उजड़ रही धरती की हरितिमा, लहू लाल बिखरा हर ओर।
माँ वसुंधरा हुई लहूलुहान, ब्रह्माण्ड बन गया रक्ताचल,
चारों ओर फैल गई अराजकता, छिन्न भिन्न हुआ माँ का आँचल।

करते हैं हम विश्व शाँति की बातें, बिफल हो जाती शाँति की क़वायद,
क्यों थोप दिए गए युद्ध मासूमों पर, किसने ढा दी धरती पर क़यामत।
कल तक जो थे आपस में हिमायती, सहसा हुए ख़ून के दलाल,
पल भर में हुए एक दूजे के शत्रु, कर रहे एक दूजे को हलाल।

द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका से, उबरी नहीं धरती अब तक,
क्यों भूल गया विश्व वह दिन, हीरोसीमा नागासाकी पर बम गिरा था जब।
दो विश्वयुद्ध की दोहरी मार से, हुआ था जो प्रकृति का शमन,
क्यों थोप रहे तृतीय विश्वयुद्ध, कुछ तो करो अंजाम का चिंतन।

रोक दो संभावित विश्वयुद्ध की विभीषिका, रोक दो देशों का आपसी वैमनष्य,
रोक दो धरा पर हो रही बर्बादी, रोक दो देशों के बीच शक्ति का संघर्ष।
क्यों हो रहे उनमत्त विश्व के कर्णधारों, क्यों हो रहा मानवता का हलाहल,
क्यों नहीं करते आपस में शांतिवार्ता, क्यों नहीं निकालते युद्ध का कोई हल?

युद्ध से नहीं किसी को लाभ, नहीं होता कुछ भी हासिल,
युद्ध से न हुआ किसी का भला, मानवता को नहीं मिलता साहिल।
रोक दो युद्ध की यह परंपरा, तोड़ दो सीमाओं की यह बंदिशें,
एक विश्व हो, एक संसार हो, मिटा दो आपस की सारी रंजिशे।


लेखन तिथि : 27 फ़रवरी, 2022
            

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