ग़ज़ल

अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
साहिर लुधियानवी
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़्मा छे�
जो मुश्किल रास्ते हैं उन को यूँ हमवार करना है
नुसरत मेहदी
जो मुश्किल रास्ते हैं उन को यूँ हमवार करना है हमें जज़्बों की कश्ती से समुंदर पार करना है हमारे हौसले मजरूह करना च
सहरा सहरा भटक रही हूँ मैं
नुसरत मेहदी
सहरा सहरा भटक रही हूँ मैं अब नज़र आ कि थक रही हूँ मैं बिछ रहे हैं सराब राहों में हर क़दम पर अटक रही हूँ मैं क्यूँ नज
आप तो इश्क़ में दानाई लिए बैठे हैं
नुसरत मेहदी
आप तो इश्क़ में दानाई लिए बैठे हैं और दिवाने हैं कि रुस्वाई लिए बैठे हैं हम ख़ाना-ए-हिज्र में यादें तिरी रक़्साँ ह�
यहाँ हवा के सिवा रात भर न था कोई
नुसरत मेहदी
यहाँ हवा के सिवा रात भर न था कोई मुझे लगा था कोई है मगर न था कोई थी एक भीड़ मगर हम-सफ़र न था कोई सफ़र के वक़्त जुदाई का
अँधेरी रात को दिन के असर में रक्खा है
नुसरत मेहदी
अँधेरी रात को दिन के असर में रक्खा है चराग़ हम ने तिरी रहगुज़र में रक्खा है ये हौसला जो अभी बाल-ओ-पर में रक्खा है तु�
उड़ने की आरज़ू में हवा से लिपट गया
नुसरत मेहदी
उड़ने की आरज़ू में हवा से लिपट गया पत्ता वो अपनी शाख़ के रिश्तों से कट गया ख़ुद में रहा तो एक समुंदर था ये वजूद ख़ु�
दुनिया समझ रही है कि पत्थर उछाल आए
मंसूर उस्मानी
दुनिया समझ रही है कि पत्थर उछाल आए हम अपनी प्यास जा के समुंदर में डाल आए जो फाँस चुभ रही है दिलों में वो तू निकाल जो
हालात क्या ये तेरे बिछड़ने से हो गए
मंसूर उस्मानी
हालात क्या ये तेरे बिछड़ने से हो गए लगता है जैसे हम किसी मेले में खो गए आँखें बरस गईं तो सुकूँ दिल को मिल गया बादल त�
इस शहर में चलती है हवा और तरह की
मंसूर उस्मानी
इस शहर में चलती है हवा और तरह की जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की इस बार तो पैमाना उठाया भी नहीं था इस बार थी रिंदो�
आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए
मंसूर उस्मानी
आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए बरसात के मौसम में सितारे निकल आए था तुझ से बिछड़ जाने का एहसास मगर अब जीने के लिए
बुझने न दो चराग़-ए-वफ़ा जागते रहो
मंसूर उस्मानी
बुझने न दो चराग़-ए-वफ़ा जागते रहो पागल हुई है अब के हवा जागते रहो सज्दों में है ख़ुलूस तो फिर चाँदनी के साथ उतरेगा �
यार पुराने छूट गए तो छूट गए
जतिन्दर परवाज़
यार पुराने छूट गए तो छूट गए काँच के बर्तन टूट गए तो टूट गए सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं तीर कमाँ से छूट गए तो छूट
यूँही उदास है दिल बे-क़रार थोड़ी है
जतिन्दर परवाज़
यूँही उदास है दिल बे-क़रार थोड़ी है मुझे किसी का कोई इंतिज़ार थोड़ी है नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे तुम्ह�
सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र ख़ून में तर
जतिन्दर परवाज़
सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र ख़ून में तर शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर तुम तो ख़त में लिख देती �
गुम-सुम तन्हा बैठा होगा
जतिन्दर परवाज़
गुम-सुम तन्हा बैठा होगा सिगरेट के कश भरता होगा उस ने खिड़की खोली होगी और गली में देखा होगा ज़ोर से मेरा दिल धड़का
वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है
जतिन्दर परवाज़
वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है मोहब्बत का पहला असर काटता है मुझे घर में भी चैन पड़ता नहीं था सफ़र में हूँ अब तो सफ�
मैं दुनिया की हक़ीक़त जानता हूँ
नक़्श लायलपुरी
मैं दुनिया की हक़ीक़त जानता हूँ किसे मिलती है शोहरत जानता हूँ मिरी पहचान है शे'र-ओ-सुख़न से मैं अपनी क़द्र-ओ-क़ीमत
अपना दामन देख कर घबरा गए
नक़्श लायलपुरी
अपना दामन देख कर घबरा गए ख़ून के छींटे कहाँ तक आ गए भूल थी अपनी किसी क़ातिल को हम देवता समझे थे धोका खा गए हर-क़दम प
कोई झंकार है नग़्मा है सदा है क्या है
नक़्श लायलपुरी
कोई झंकार है नग़्मा है सदा है क्या है तू किरन है के कली है के सबा है क्या है तेरी आँखों में कई रंग झलकते देखे सादगी ह
तमाम-उम्र चला हूँ मगर चला न गया
नक़्श लायलपुरी
तमाम-उम्र चला हूँ मगर चला न गया तिरी गली की तरफ़ कोई रास्ता न गया तिरे ख़याल ने पहना शफ़क़ का पैराहन मिरी निगाह से �
ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है
नक़्श लायलपुरी
ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है जो भी मिलता है मिरा दर्द बढ़ा देता है किसी हमदम का सर-ए-शाम ख़याल आ जाना नींद जलती ह
जब दर्द मोहब्बत का मिरे पास नहीं था
नक़्श लायलपुरी
जब दर्द मोहब्बत का मिरे पास नहीं था मैं कौन हूँ क्या हूँ मुझे एहसास नहीं था टूटा मिरा हर ख़्वाब हुआ जब से जुदा वो इ�
माना तिरी नज़र में तिरा प्यार हम नहीं
नक़्श लायलपुरी
माना तिरी नज़र में तिरा प्यार हम नहीं कैसे कहें कि तेरे तलबगार हम नहीं सींचा था जिस को ख़ून-ए-तमन्ना से रात-दिन गुल
तुझ को सोचा तो खो गईं आँखें
नक़्श लायलपुरी
तुझ को सोचा तो खो गईं आँखें दिल का आईना हो गईं आँखें ख़त का पढ़ना भी हो गया मुश्किल सारा काग़ज़ भिगो गईं आँखें कित
जब से बुलबुल तू ने दो तिनके लिए
अमीर मीनाई
जब से बुलबुल तू ने दो तिनके लिए टूटती हैं बिजलियाँ इन के लिए है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार सादगी गहना है इस सिन के �
मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता
अमीर मीनाई
मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता ये न था तो काश दिल पर मुझे इख़्तियार होता पस-ए-मर्ग काश यूँ ही मुझे वस्ल-ए-य�
गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं
अमीर मीनाई
गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं सहर हुई तो वो आँखें न वो निगाहें थीं निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया कभ
हम लोटते हैं वो सो रहे हैं
अमीर मीनाई
हम लोटते हैं वो सो रहे हैं क्या नाज़-ओ-नियाज़ हो रहे हैं क्या रँग जहाँ में हो रहे हैं दो हँसते हैं चार रो रहे हैं दु
चौंक उट्ठा हूँ तिरे लम्स के एहसास के साथ
राग़िब अख़्तर
चौंक उट्ठा हूँ तिरे लम्स के एहसास के साथ आ गया हूँ किसी सहरा में नई प्यास के साथ तब भी मसरूफ़-ए-सफ़र था मैं अभी की मा�

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