ग़ज़ल

दिल में मेरे कोई भूचाल सा ठहर गया
सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
दिल में मेरे कोई, भूचाल-सा ठहर गया, बस रह गया वो याद में, ख़्याल-सा ठहर गया। बात कोई आ उठी, कि तीर सी वो है लगी, ग़ुस्सा उत
तेरे बाद कुछ भी ना था
चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'ज़ानिब'
तेरे बाद कुछ भी ना था, दिल में फिर भी धड़कन रही, हर इक बात में तू था, साँसों में तेरी उलझन रही। ख़्वाबों में जो रंग भर�
सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं
जिगर मुरादाबादी
सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं हम मगर सादगी के मारे हैं उस की रातों का इंतिक़ाम न पूछ जिस ने हँस हँस के दिन गुज़ारे �
शरमा गए लजा गए दामन छुड़ा गए
जिगर मुरादाबादी
शरमा गए लजा गए दामन छुड़ा गए ऐ इश्क़ मर्हबा वो यहाँ तक तो आ गए दिल पर हज़ार तरह के औहाम छा गए ये तुम ने क्या किया मिर�
शब-ए-फ़िराक़ है और नींद आई जाती है
जिगर मुरादाबादी
शब-ए-फ़िराक़ है और नींद आई जाती है कुछ इस में उन की तवज्जोह भी पाई जाती है ये उम्र-ए-इश्क़ यूँही क्या गँवाई जाती है ह
तबीअत इन दिनों बेगाना-ए-ग़म होती जाती है
जिगर मुरादाबादी
तबीअत इन दिनों बेगाना-ए-ग़म होती जाती है मिरे हिस्से की गोया हर ख़ुशी कम होती जाती है सहर होने को है बेदार शबनम होत�
आँखों में बस के दिल में समा कर चले गए
जिगर मुरादाबादी
आँखों में बस के दिल में समा कर चले गए ख़्वाबीदा ज़िंदगी थी जगा कर चले गए हुस्न-ए-अज़ल की शान दिखा कर चले गए इक वाक़ि�
इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग
जिगर मुरादाबादी
इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग माहताब आफ़्ताब हैं हम लोग गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग ये न समझो ख़राब हैं हम लोग शाम से
वो जो रूठें यूँ मनाना चाहिए
जिगर मुरादाबादी
वो जो रूठें यूँ मनाना चाहिए ज़िंदगी से रूठ जाना चाहिए हिम्मत-ए-क़ातिल बढ़ाना चाहिए ज़ेर-ए-ख़ंजर मुस्कुराना चाहि�
जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगा
जिगर मुरादाबादी
जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगा तो बस हाथ मलते ही रह जाइएगा निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा जहाँ जाइएगा हमें पाइएगा मि�
कहीं पे चंदर उदास बैठा
चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'ज़ानिब'
कहीं पे चंदर उदास बैठा, कहीं सुधा भी बुझी पड़ी है मगर ये क़िस्मत का खेल देखो, न बात कोई सुनी पड़ी है वो एक लम्हा था सिर
नसीब अपना जला चुके हैं
चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'ज़ानिब'
नसीब अपना जला चुके हैं, चराग़ कोई बुझा न पाए ग़मों का साया जो पड़ चुका है, वो अब कभी भी हटा न पाए उदास आँखों में रौशनी
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
साहिर लुधियानवी
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़्मा छे�
जो मुश्किल रास्ते हैं उन को यूँ हमवार करना है
नुसरत मेहदी
जो मुश्किल रास्ते हैं उन को यूँ हमवार करना है हमें जज़्बों की कश्ती से समुंदर पार करना है हमारे हौसले मजरूह करना च
सहरा सहरा भटक रही हूँ मैं
नुसरत मेहदी
सहरा सहरा भटक रही हूँ मैं अब नज़र आ कि थक रही हूँ मैं बिछ रहे हैं सराब राहों में हर क़दम पर अटक रही हूँ मैं क्यूँ नज
आप तो इश्क़ में दानाई लिए बैठे हैं
नुसरत मेहदी
आप तो इश्क़ में दानाई लिए बैठे हैं और दिवाने हैं कि रुस्वाई लिए बैठे हैं हम ख़ाना-ए-हिज्र में यादें तिरी रक़्साँ ह�
यहाँ हवा के सिवा रात भर न था कोई
नुसरत मेहदी
यहाँ हवा के सिवा रात भर न था कोई मुझे लगा था कोई है मगर न था कोई थी एक भीड़ मगर हम-सफ़र न था कोई सफ़र के वक़्त जुदाई का
अँधेरी रात को दिन के असर में रक्खा है
नुसरत मेहदी
अँधेरी रात को दिन के असर में रक्खा है चराग़ हम ने तिरी रहगुज़र में रक्खा है ये हौसला जो अभी बाल-ओ-पर में रक्खा है तु�
उड़ने की आरज़ू में हवा से लिपट गया
नुसरत मेहदी
उड़ने की आरज़ू में हवा से लिपट गया पत्ता वो अपनी शाख़ के रिश्तों से कट गया ख़ुद में रहा तो एक समुंदर था ये वजूद ख़ु�
दुनिया समझ रही है कि पत्थर उछाल आए
मंसूर उस्मानी
दुनिया समझ रही है कि पत्थर उछाल आए हम अपनी प्यास जा के समुंदर में डाल आए जो फाँस चुभ रही है दिलों में वो तू निकाल जो
हालात क्या ये तेरे बिछड़ने से हो गए
मंसूर उस्मानी
हालात क्या ये तेरे बिछड़ने से हो गए लगता है जैसे हम किसी मेले में खो गए आँखें बरस गईं तो सुकूँ दिल को मिल गया बादल त�
इस शहर में चलती है हवा और तरह की
मंसूर उस्मानी
इस शहर में चलती है हवा और तरह की जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की इस बार तो पैमाना उठाया भी नहीं था इस बार थी रिंदो�
आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए
मंसूर उस्मानी
आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए बरसात के मौसम में सितारे निकल आए था तुझ से बिछड़ जाने का एहसास मगर अब जीने के लिए
बुझने न दो चराग़-ए-वफ़ा जागते रहो
मंसूर उस्मानी
बुझने न दो चराग़-ए-वफ़ा जागते रहो पागल हुई है अब के हवा जागते रहो सज्दों में है ख़ुलूस तो फिर चाँदनी के साथ उतरेगा �
यार पुराने छूट गए तो छूट गए
जतिन्दर परवाज़
यार पुराने छूट गए तो छूट गए काँच के बर्तन टूट गए तो टूट गए सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं तीर कमाँ से छूट गए तो छूट
यूँही उदास है दिल बे-क़रार थोड़ी है
जतिन्दर परवाज़
यूँही उदास है दिल बे-क़रार थोड़ी है मुझे किसी का कोई इंतिज़ार थोड़ी है नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे तुम्ह�
सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र ख़ून में तर
जतिन्दर परवाज़
सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र ख़ून में तर शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर तुम तो ख़त में लिख देती �
गुम-सुम तन्हा बैठा होगा
जतिन्दर परवाज़
गुम-सुम तन्हा बैठा होगा सिगरेट के कश भरता होगा उस ने खिड़की खोली होगी और गली में देखा होगा ज़ोर से मेरा दिल धड़का
वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है
जतिन्दर परवाज़
वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है मोहब्बत का पहला असर काटता है मुझे घर में भी चैन पड़ता नहीं था सफ़र में हूँ अब तो सफ�
मैं दुनिया की हक़ीक़त जानता हूँ
नक़्श लायलपुरी
मैं दुनिया की हक़ीक़त जानता हूँ किसे मिलती है शोहरत जानता हूँ मिरी पहचान है शे'र-ओ-सुख़न से मैं अपनी क़द्र-ओ-क़ीमत

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