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ऐ मालिक तेरे बंदे हम
भरत व्यास
ऐ मालिक तेरे बंदे हम ऐसे हो हमारे करम नेकी पर चलें और बदी से टलें ताकि हँसते हुए निकले दम जब ज़ुलमों का हो सामना त�
ज्योत से ज्योत जगाते चलो
भरत व्यास
ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो जिसका न कोई संगी साथ�
मैं गाऊँ तू चुप हो जा
भरत व्यास
मैं गाऊँ तू चुप हो जा मैं गाऊँ तू चुप हो जा मैं जागूँ रे तू सो जा धरती की काया सोई अंबर की माया सोई झिलमिल तारों के न
जीवन में पिया तेरा साथ रहे
भरत व्यास
जीवन में पिया तेरा साथ रहे हाथों में तेरे मेरा हाथ रहे जीवन में पिया तेरा साथ रहे जब तक सूरज चन्दा चमके गंगा जमुना
आधा है चंद्रमा रात आधी
भरत व्यास
आधा है चंद्रमा रात आधी रह न जाए तेरी मेरी बात आधी, मुलाक़ात आधी आधा है चंद्रमा... आस कब तक रहेगी अधूरी प्यास होगी नह�
नववर्ष की शुभकामना
सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
हे प्रभु! नव वर्ष में गिरते हुओं को थामना। है यही नव वर्ष की मंगलमयी शुभकामना॥ भूख से पीड़ित शिशु, जिनको नहीं मिलत�
अपूर्ण नव वर्ष
सुशील कुमार
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं है स्याह धुँध से भरी रात ख़ुशियों की कोई नहीं बात धरती अम्बर ये �
जय जय हो भारत माता
सुशील कुमार
हिमगिरि से बहता पानी नदियों की कल कल ध्वनियाँ मन देख देख हर्षाता बागों की कुसमित कलियाँ आनन्द भाव भर मन में गाथा �
एक बार प्रिये
सुशील कुमार
तुझपे तन मन सब वारु मैं बस तुझको अपना मानू मैं जीवन की सारी ख़ुशियाँ कर दूँ तुझपे न्योछार प्रिये तू कह दे बस एक बार प
बोलो जय श्री राम
सुशील कुमार
मर्यादा पुरुषोत्तम आए देखो अपने धाम सब जन मिलकर बोलो जय श्री राम दुल्हन जैसी सजी अयोध्या दर्शन को ललसाई राम मिलन
हरि वन्दना
चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'ज़ानिब'
जय हो तुम्हारी हे माधव मुरारी, जय हो सदा हे जग बलिहारी। सुमिरन तुम्हारी करता सदा हूँ, छाया में तुम्हारी रहता सदा हू
ओ तिरंगा
सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
ओ तिरंगा! तेरी शान रहे, तेरी ख़ातिर, मेरी जान रहे। मेरे देश का अभिमान रहे, ओ तिरंगा! तेरी शान रहे। तेरी छाया के तले, प
मँझधार फँसी नैया
उमेश यादव
मँझधार फँसी नैया, उद्धार करा देना। जीवन की कश्ती को, प्रभु पार लगा देना॥ सुख-दुःख ही जीवन है, मन को समझाना है। संघ�
स्नेह भरे आँचल में माते
उमेश यादव
कष्टों से व्याकुल मेरा मन, पीड़ा से जब भरता है। स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥ जब भी विपदा आई मुझपर, तू�
तोहरो रूप गढूँ मैं राधिका प्यारी
रोहित सैनी
सुनो वृषभानु कुमारी, राधिका प्यारी तोहरो पंथ निहारी, अँखियाँ दुखारी म्हाने मत भी सताओ, नैनन समाओ करो न देर अब आओ, र�
होली आई रे
अजय कुमार 'अजेय'
होली आई रे होली आई रे। मस्ती छाई रे मस्ती छाई रे। रंगों से भरी पिचकारी, छोरा-छोरी चोरी मारी। गुब्बारे में भर-भर रंग
श्रद्धा भक्ति प्रेममय होली है
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
ब्रज होली है रंगों का त्यौहार राधा संग खेलें होली रे। गोरी राधा हृदय गोपाल मन माधव प्रिय हमजोली रे। मोहे रंग दे गु
तो समझो की ये होली है
उमेश यादव
नयनों में ख़ुमारी छाए, साँसों में भी उष्णता आए। मन मिलने को अपनों से, होकर अधीर अकुलाए॥ लहरों सा हिलोरे ले मन, तो समझ�
बचपन के दिन
सुषमा दीक्षित शुक्ला
कितने सुंदर, बेमिसाल थे, छुटपन के दिन बचपन के दिन, रह ना पाते सखियों के बिन। रह ना पाते सखियों के बिन। खेलकूद थे मस्
क्षितिज के पार जाना है
उमेश यादव
उठो जागो बढ़ो आगे, क्षितिज के पार जाना है। सुनो नारियों, आगे बढ़कर, अपना मार्ग बनाना है॥ जकड़ी थी ज़ंजीरों से पर, तूने �
राष्ट्र की उपासना ही, अश्वमेधिक लक्ष्य हैं
उमेश यादव
राष्ट्र की उपासना ही, आश्वमेधिक लक्ष्य है। पराक्रम से राष्ट्र रक्षा, यज्ञ संस्कृति रक्ष्य है॥ अश्व है प्रतीक साह
अपनापन
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खोता जीवन सुख अपनापन, वह स्वार्थ तिमिर खो जाता है। कहँ वासन्तिक मधुमास मिलन, पतझड़ अहसास दिलाता है। भौतिक सुख साधन
मेरा गाँव
सुषमा दीक्षित शुक्ला
मेरे गाँव की सोधीं मिट्टी, अम्मा की भेजी चिट्ठी। स्कूल से हो जब छुट्टी, वो बात-बात पर खुट्टी। हर बात याद क्यूँ आती? �
मकर संक्रांति
उमेश यादव
संक्रांति का पर्व है पावन, सबके मन को भाता है। पोंगल, लोहड़ी, खिचड़ी, बीहू, मकर संक्रांति कहलाता है॥ मकर राशि में जाक�
मकर संक्रांति
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
आज हुआ किसान फिर धरा मुदित, नवान्न फ़सल कटाई होती है। फिर जले अलाव लोहड़ी उत्सव, बाली गेहूँ आग दी जाती है। ख़ुशियाँ �
जय बोलें श्रीराम की
उमेश यादव
आओ सब मिल महिमा गाएँ, जननायक श्रीराम की। राम तत्त्व मन में विकसाएँ, जय बोलें श्रीराम की॥ राज पाट को छोड़ा प्रभु ने, क
नैन मिले अनमोल
शतदल
जोगन, नैन मिले अनमोल, ओस कनों से कोमल सपने पलकों-पलकों तौल! जोगन, नैन मिले अनमोल! इन सपनों की बात निराली, दिन-दिन ह�
तेरी प्यास अमोल
शतदल
बटोही, तेरी प्यास अमोल, तेरी प्यास अमोल! नदियों के तट पर तू अपने प्यासे अधर न खोल, बटोही, तेरी प्यास अमोल! जो कुछ त�
एक सपना उगा
शतदल
एक सपना उगा जो नयन में कभी आँसुओं से धुला और बादल हुआ! धूप में छाँव बनकर अचानक मिला, था अकेला मगर बन गया क़ाफ़िला। �
कल अचानक
शतदल
कल अचानक गुनगुनाते चीड़-वन जलने लगे और उनके पाँव से लिपटी नदी बहती रही। है नदी के पास भी अपनी सुलगती पीर है, दोपहर
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