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मिलना किस काम का अगर दिल न मिले
जगत मोहन लाल रवाँ
मिलना किस काम का अगर दिल न मिले चलना बेकार है जो मंज़िल न मिले वस्त-ए-दरिया में ग़र्क़ होना बेहतर उस कि नज़र में आ के
अफ़्लास अच्छा न फ़िक्र-ए-दौलत अच्छी
जगत मोहन लाल रवाँ
अफ़्लास अच्छा न फ़िक्र-ए-दौलत अच्छी जो दिल को पसंद हो वो हालत अच्छी जिस से इस्लाह-ए-नफ़्स ना-मुम्किन हो उस ऐश से हर त
अंदाज़ जफ़ा बदल के देखो तो सही
जगत मोहन लाल रवाँ
अंदाज़ जफ़ा बदल के देखो तो सही पाँव से ये फूल मल के देखो तो सही रंग गुल-कारी जबीन सज्दा इक दिन घर से निकल के देखो तो स�
नाला तेरा नाज़ से बाला है
जगत मोहन लाल रवाँ
नाला तेरा नाज़ से बाला है ये राज़ इफ़शा-ए-राज़ से बाला है इंसाँ मा'ज़ूर फ़िक्र-ए-इंसाँ मा'ज़ूर नग़्मा-ए-आवाज़ साज़ स�
फूलों से तमीज़-ए-ख़ार पैदा कर लें
जगत मोहन लाल रवाँ
फूलों से तमीज़-ए-ख़ार पैदा कर लें यक-रंगी-ए-ए'तिबार पैदा कर लें ठहरो चलते हैं सैर-ए-गुलशन को रवाँ पहले दिल में बहार प�
सरमा-ए-ए'तिबार दे दें तुम को
जगत मोहन लाल रवाँ
सरमा-ए-ए'तिबार दे दें तुम को रंग-ए-हुस्न-ए-बहार दे दें तुम को इस से बेहतर कि नित नए शिकवे हों हर चीज़ का इख़्तियार दे द
हर हाल में आबरू-ए-फ़न लाज़िम है
शाद अज़ीमाबादी
हर हाल में आबरू-ए-फ़न लाज़िम है तक़लीद-ए-फ़सीहान-ए-वतन लाज़िम है दरयूज़ा-गरी है ऐब सुन लें अहबाब आप-अपनी ज़बान में स�
मज़मूँ मेरे दिल में बे-तलब आते हैं
शाद अज़ीमाबादी
मज़मूँ मेरे दिल में बे-तलब आते हैं क़ुदसी तबक़-ए-नूर में दबे जाते हैं कुछ और नहीं इल्म मुझे इस के सिवा कहता हूँ वही ज
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं
शाद अज़ीमाबादी
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं अफ़्लाक-ए-तरक़्क़ी पे चढ़ते जाते हैं मकतब बदला किताब बदली लेकिन हम एक वही सबक़ पढ
तारीफ़ बताऊँ शेर की क्या क्या है
शाद अज़ीमाबादी
तारीफ़ बताऊँ शेर की क्या क्या है नग़्मों की सदाक़त इस से ख़ुद पैदा है असलियत-ए-हाल जिस से मख़्फ़ी रह जाए हुशियार कि
बदले न सदाक़त का निशाँ एक रहे
शाद अज़ीमाबादी
बदले न सदाक़त का निशाँ एक रहे हर हाल में पिन्हाँ ओ निहाँ एक रहे इंसाँ है वही जो इस दौर-ए-दो-रंगी से बचे लाज़िम है कि द�
तन्हा है चराग़ दूर परवाने हैं
शाद अज़ीमाबादी
तन्हा है चराग़ दूर परवाने हैं अपने थे जो कल आज वो बेगाने हैं बे-रंगी-ए-दुनिया का न पूछो अहवाल क़िस्से हैं कहानियाँ �
भाए जो निगाह को वही रंग अच्छा
अकबर इलाहाबादी
भाए जो निगाह को वही रंग अच्छा लाए जो राह पर वही ढंग अच्छा क़ुरआन-ओ-नमाज़ से अगर दिल न हो गर्म हंगाम-ए-रक़्स-ओ-मुतरिब
हर एक से सुना नया फ़साना हम ने
अकबर इलाहाबादी
हर एक से सुना नया फ़साना हम ने देखा दुनिया में एक ज़माना हम ने अव्वल ये था कि वाक़फ़ियत पे था नाज़ आख़िर ये खुला कि
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