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सवैया छंद

काली घटा का घमंड घटा
श्रीधर पाठक
काली घटा का घमंड घटा, नभ-मंडल तारक-वृंद खिले। उजियाली निशा, छबि शाली दिशा, अति सोहै धरातल फूले फले॥ निखरे सुथरे बन प�
मेहन की धुनि को सुनिबे कों
श्रीधर पाठक
मेहन की धुनि को सुनिबे कों सनेह सने हिय माँहि सुखारे। सोहैं सलोने-सरूप-सजे पख चित्रित चंद्रिका चारु सँवारे॥ प्रे�
सीता
सुशील कुमार
राम गए वनवास तो राम के साथ में साथ निभा गई सीता, प्रेम पुनीत चराचर में सचराचार को बतला गई सीता। सीय को सीय बनाया जो र�
प्रेम
सुशील कुमार
प्रेम न होत जो भ्रात को भ्रात से तौ पद त्राण न राज चलाते। प्रेम न होत जो भक्त से ईश को तौ शबरी फल जूठ न खाते॥ प्रेम न ह�
हनुमान
सुशील कुमार
सीय हरी जब रावण सिंधु को लांघि मिलाए दिए बजरंगी। रावण के अभिमान गुमान का लंक जलाए दिए बजरंगी॥ प्रश्न उठा जब राम की �
राम
सुशील कुमार
राम के नाम सा नाम नहीं जग संत कहें श्रुति चारि बखानी, राम कथानक राम स्वयं बिन राम नहीं कहीं राम कहानी। राम बिना नहि�
मात कहै मेरो पूत सपूत है
गंग
मात कहै मेरो पूत सपूत है, भैन कहै मेरो सुंदर भैया। तात कहै मेरो है कुलदीपक, लोक में लाज रु धीरबँधैया। नारि कहै मेरो
रैन भए दिन तेज छिपै अरु
गंग
रैन भए दिन तेज छिपै अरु सूर्य छिपै अति-पर्ब के छाए। देखत सिंह छिपै गजराज, सो चंद छिपै है अमावस आए। पाप छिपै हरिनाम ज
जो कहौं केशव सोम सरोज
केशव
जो कहौं केशव सोम सरोज सुधासुर भृंगन देह दहे हैं। दाड़िम के फल शेफलि विद्रुप हाटक कोटिक कष्ट सहे हैं॥ कोक, कपोत, कर�
सोने की एक लता तुलसी बन
केशव
सोने की एक लता तुलसी बन क्यौं करणों सु न बुद्धि सकै छ्वै। केशवदास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्रीफल से ब्बै॥ फूलि सरोज

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