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प्रेम की भाषा
संजय राजभर 'समित'
अंतः से बोलो, मधु रस घोलो, प्रेम सरल हो,धाम करें। ममता की भाषा, सबकी आशा, पशु भी समझे, काम करें॥ परखते हैं खरा, समझो न ज़
छोटे दलों का गठबंधन
संजय राजभर 'समित'
यहाँ संख्या मंत्र, बने है यंत्र, इस लोकतंत्र, गीत चले। जैसी गति तेरी, वैसी मेरी, तेरी मेरी, मीत भले।। गठजोड़ ज़रूरी, क
वो बारिश का दिन
संजय राजभर 'समित'
वो बारिश का दिन, रहे लवलीन, काग़ज़ी नाव, अच्छे थे। हम बच्चों का दल, देखते कमल, लड़ते थे पर, सच्चे थे।। लड़कपन थी ख़ूब, कीच�
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