पद

पीन पयोधर दूबरि गता
विद्यापति
पीन पयोधर दूबरि गता। मेरु उपजल कनक लता॥ ए कान्ह ए कान्ह तोरि दोहाई। अति अपरुब देखलि राई॥ मुख मनोहर अधर रंगे। फु�
चंदा जनि उग आजुक राति
विद्यापति
चंदा जनि उग आजुक राति। पियाके लिखिअ पठाओब पाति॥ साओन सएँ हम करब पिरीति। जत अभिमत अभिसारक रीति॥ अथरा राहु बुझाए�
चल हंसा वा देस
कबीर
चल हंसा वा देस जहँ पिया बसै चितचोर। सुरत सोहासिन है पनिहारेन, भरै टाढ़ बिन डारे॥ वहि देसवाँ बादर ना उमड़ै रिमझिम ब
बात बिनु करत पिया बदनाम
भारतेंदु हरिश्चंद्र
बात बिनु करत पिया बदनाम। कौन हेतु वह लाज हरै मम बिना बात बे-काम॥ आजु गई हौं प्रात जमुन-तट आयो तहं घनस्याम। पकरि मो�
सखी मन-मोहन मेरे मीत
भारतेंदु हरिश्चंद्र
सखी मन-मोहन मेरे मीत। लोक वेद कुल-कानि छांड़ि हम करी उनहिं सों प्रीत॥ बिगरौ जग के कारज सगरे उलटौ सबही नीत। अब तौ ह�
बड़े की होत बड़ी सब बात
भारतेंदु हरिश्चंद्र
बड़े की होत बड़ी सब बात। बड़ो क्रोध पुनि बड़ी दयाहू तुम मैं नाथ लखात॥ मोसे दीन हीन पै नहिं तौ काहे कुपित जनात। पै �
अब कैसे छुटै राम रट लागी
रैदास
अब कैसे छुटै राम रट लागी। (टेक) प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग−अंग बास समानी। प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा, जैसे चि
पीआ राम रसु पीआ रे
रैदास
पीआ राम रसु पीआ रे। (टेक) भरि भरि देवै सुरति कलाली, दरिआ दरिआ पीना रे। पीवतु पीवतु आपा जग भूला, हरि रस मांहि बौराना र�

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