साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बोकारो, झारखण्ड
1981
मैंने कहा : भई! आदमी दस हज़ार साल पुराना है और तकलीफ़ें उसकी उससे भी पुरानी कि जब आदमी आदमी नहीं था तकलीफ़ें तब भी थीं उसने कहा : अच्छा! अब आदमी कहाँ है अब तो बस तकलीफ़ें हैं और अब तो बस तकलीफ़ें ही रहेंगी कई शताब्दियों तक!
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