साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
मंडराते खतरे ज्यों चील औ कौआ! कतर ब्योंत है आपसदारी में! पूरे मौक़े हैं रंगदारी में!! ज़हरीले नाते हैं मानो अकौआ! छीना झपटी फ़ैशन हो गई! मेल मिलाप नागफनी बो गई!! आदमी लगने लगा है कोई हौआ!
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