आज हैं केसर रंग रँगे वन (कविता)

आज हैं केसर रंग रँगे वन
रंजित शाम भी फागुन की खिली-खिली पीली कली-सी
केसर के वसनों में छिपा तन
सोने की छाँह-सा
बोलती आँखों में
पहले वसंत के फूल का रंग है।
गोरे कपोलों पे हौले से आ जाती
पहले ही पहले के
रंगीन चुंबन की-सी ललाई।
आज हैं केसर रंग रँगे
गृह द्वार नगर वन
जिनके विभिन्न रंगों में है रँग गई
पूनो की चंदन चाँदनी।

जीवन में फिर लौटी मिठास है
गीत की आख़िरी मीठी लकीर-सी
प्यार भी डूबेगा गोरी-सी बाँहों में
होंठों में आँखों में
फूलों में डूबे ज्यों
फूल की रेशमी रेशमी छाँहें।
आज हैं केसर रंग रँगे वन।


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