साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3564
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
आज टूटी सी भुजा है, यानि घायल अब शुजा है। एक दूजे के लिए हैं, राम हैं मानो कुजा है। ये बहारें हैं बलाएँ, गर बवंडर ही अजा है। आँख में आँसू बसे हैं, प्रीत करना भी सजा है। जो सदा हिटलर बने थे, हाँथ में धार्मिक ध्वजा है।
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