सुनो! आलोचकों
मेरी ख़ामोशी ही
अनगिनत सवालों का
जवाब है।
तुम करते रहो प्रतिकार
मुझे अच्छा लगता है,
आपका खीझना व्यवहार।
क्योंकि यही तो है
मेरे लक्ष्य की पतवार।
इसी से मैं अपनी रगों में
साहस भरता हूँ,
पर! मैं मौन रहूँ तो भी
आपको क्यूँ अखरता हूँ?
चेत है! क़दम मेरे बढ़ने पर
जलन आपकी बढ़ेगी,
आलोचना करो या प्रशंसा
मेरी प्रवृति नहीं बदलेगी।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।