आँधी आई है (नवगीत)

बदहवास सा मौसम लगता
आँधी आई है।

बेमौसम है
पानी बरसा।
कुँआ-ताल है
जल को तरसा॥

शाकिनी-डाकिनी जैसी
लगती मँहगाई है।

सदाचार का
टोटा है अब।
माल बहुत ही
खोटा है अब॥

प्रेमी ने प्रेयसी की
ज्यों पकड़ी कलाई है।

टाइम बहुत
बुरा लगता है।
इंसाँ-इंसाँ को
ठगता है॥

ठगी-ठगी-सी है वो
शायद धोखा खाई है।


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