साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
शिवहर, बिहार
1996
आओ मनाए ख़ुशियों का पर्व, झूमें गाएँ इसमें सब। आओ जलाएँ उन दियों को, जो वर्षो पहले बूझ चूके थे। वजह क्या था, ग़लती किसकी थी, सारी बातों को भूलकर, आओ आज मैं और तुम हम हो जाएँ, जैसे दिया और बाती। आओ हम सब मिलकर, जलाएँ ख़ुशियों का दिया। आओ मनाए ख़ुशियों का पर्व, झूमें गाएँ इसमें सब।
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