आप भी आ जाइए (गीत)

कब तलक मैं यूँ अकेला इस तरह जी पाऊँगा।
इस निशा नागिन के विष को कैसे मैं पी पाऊँगा।
इस ज़हर में अधर का मधु रस मिला तो जाइए।
याद जो हरदम रहे वो बात तो कर जाइए।
रात आई चाँद आया आप भी आ जाइए।।

धीरे-धीरे नील नभ धरती पे झुकता आ रहा है।
बादलों की गोद में अब चाँद धँसता जा रहा है।
तन्हा है मापतपुरी अब साथ तो दे जाइए।
सो गया सारा शहर थमते क़दम आ जाइए।
रात आई चाँद आया आप भी आ जाइए।।


लेखन तिथि : 1976
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यह गीत सतीश मापतपुरी जी 1976 में एम.वी. कॉलेज, बक्सर में पढ़ने के दौरान लिखे थें।
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