आप जब चेहरा बदल कर आ गए (ग़ज़ल)

आप जब चेहरा बदल कर आ गए
सच तो ये है हम भी धोका खा गए

आप अब आए हैं फ़स्ल-ए-गुल के बअ'द
फूल जब उम्मीद के मुरझा गए

अश्क क्या छलके हमारी आँख से
लफ़्ज़ भी आवाज़ में बल खा गए

हम तुम्हारे आइने में क़ैद थे
तुम तो बस बेकार में घबरा गए

तोड़ लाए शीशा-ए-दिल फिर कहीं
तुम अँधेरे में कहाँ टकरा गए

आप ने ग़म ही दिए बस ग़म हमें
आप कब ख़ुशियाँ यहाँ बरसा गए


  • विषय : -  
यह पृष्ठ 454 बार देखा गया है
×

अगली रचना

उल्फ़त का दर्द-ए-ग़म का परस्तार कौन है


पिछली रचना

दर्द जब जब जहाँ से गुज़रेगा
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें