क्यूँ निराश होकर बैठ गए,
यह तो पल भर की बाधा है।
आगे तो बढ़कर दिखलाओ साथी,
पग-पग पर जिज्ञासा है।
शोषक तो सुशोभित हैं,
शोषित का क्या कहना है।
वह शेर हो, चाहे हो बकरी,
सबके मन मे आशा है।
क्यूँ निराश होकर बैठ गए,
यह तो पल भर की बाधा है।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।