साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
1913 - 1985
आसमान ख़ुद हवा बनकर नहीं बहता जैसे हवा उसमें बहती है ऐसे जीवन भी ख़ुद नहीं बन जाता मौत मौत उसमें रहती है कहीं पहले से और सिर उठाती है फिर वक़्त पाकर आसमान में चुप पड़ी हुई हवा की तरह आसमान ख़ुद हवा बनकर नहीं बहता!
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