आसमान ख़ुद (कविता)

आसमान ख़ुद हवा बनकर
नहीं बहता जैसे
हवा उसमें बहती है

ऐसे जीवन भी
ख़ुद नहीं बन जाता मौत
मौत उसमें रहती है
कहीं पहले से

और सिर उठाती है फिर
वक़्त पाकर
आसमान में चुप पड़ी हुई
हवा की तरह

आसमान ख़ुद
हवा बनकर नहीं बहता!


यह पृष्ठ 155 बार देखा गया है
×


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें