साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
1933 - 2015
गुलमोहरों की बेलें मुरझा गईं— शायद, तुसने विश्वास की कत्थई कमरी को फाड़ दिया! सच—? सुबह, लँगड़ी हवा बपतिस्मा पढ़ रही थी और वह, लकड़हारे की जवान लड़की सोहर के गीत गा रही थी!
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