साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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जौनपुर, उत्तर प्रदेश
1993
मेरी आत्मा कुछ अलग क़िस्म की मिट्टी से बनाई गई एक बेचैन और शांत दहकता हुआ चूल्हा जिसने चारों पहर और सातों मास अपनी छाती में जिलाए रखी ज़रूरी आग मिट्टी का एक ऐसा चूल्हा जो सदियों से भूखे मनुष्यों के लिए सदियों तक भोजन पकाने में ख़ुद को तपाता रहा चुपचाप मेरी आत्मा उसी बेचैन मगर शांत दहकते हुए चूल्हे की मिट्टी से बनाई गई।
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