बादल उड़ते हैं जल लेकर,
दो-एक? ना, पूरा दल लेकर।
ज्यों पड़ी तप्त भू पर दृष्टि,
करते शीतल, करके वृष्टि।
लगता है आया पृथ्वी पर—
जल, गंगाजल जैसा पावन।
चहुँओर छा रही ख़ुशहाली,
लगता है आया है सावन॥
दिनकर की किरणों से झुलसी,
गुल मेहंदी, गेंदा औ' तुलसी।
छू गईं बूँद, हो गईं हरी,
मुख पर उनके मुस्कान भरी।
छाई सुन्दरता को विलोक,
लगता है मुझको मनभावन।
चहुँओर छा रही हरियाली,
लगता है आया है सावन॥
बादल हैं अतिथि के समान,
मिलता है कुछ ही दिवस मान।
मेघों का आना सुखद लगे,
कुछ दिन रह जाना दुःखद लगे।
कुछ ही दिन में मेहमानों ने,
कर दिया धरा पर जलप्लावन।
चहुँओर दिख रहा है पानी,
लगता है आया है सावन॥
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