साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
1889 - 1937
अब जागो जीवन के प्रभात! वसुधा पर ओस बने बिखरे हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे ऊषा बटोरती अरुण गात! अब जागो जीवन के प्रभात! तम-नयनों की ताराएँ सब— मुँद रही किरण दल में हैं अब, चल रहा सुखद यह मलय वात! अब जागो जीवन के प्रभात! रजनी की लाज समेटो तो, कलरव से उठ कर भेंटो तो, अरुणांचल में चल रही बात। अब जागो जीवन के प्रभात!
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