अब जागो जीवन के प्रभात (गीत)

अब जागो जीवन के प्रभात!

वसुधा पर ओस बने बिखरे
हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे
ऊषा बटोरती अरुण गात!

अब जागो जीवन के प्रभात!

तम-नयनों की ताराएँ सब—
मुँद रही किरण दल में हैं अब,
चल रहा सुखद यह मलय वात!

अब जागो जीवन के प्रभात!

रजनी की लाज समेटो तो,
कलरव से उठ कर भेंटो तो,
अरुणांचल में चल रही बात।

अब जागो जीवन के प्रभात!


यह पृष्ठ 661 बार देखा गया है
×

अगली रचना

झरना


पिछली रचना

वे कुछ दिन कितने सुंदर थे
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें