अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई (ग़ज़ल)

अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई,
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।

आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुज़री,
था लुटेरों का जहाँ गाँव वहीं रात हुई।

ज़िंदगी भर तो हुई गुफ़्तुगू ग़ैरों से मगर,
आज तक हम से हमारी न मुलाक़ात हुई।

हर ग़लत मोड़ पे टोका है किसी ने मुझ को,
एक आवाज़ तिरी जब से मिरे साथ हुई।

मैं ने सोचा कि मिरे देश की हालत क्या है,
एक क़ातिल से तभी मेरी मुलाक़ात हुई।


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