अब तो लगता है (कविता)

हम लड़कों का प्रिय खेल था
छुपा-छुपौवल
क्योंकि इसमें अक्सर ही
छुपा लेते थे हम
बड़ों की आँखों से
अपनी आँखों के रंग

हम उन्हें इतना भरमा लेते थे
अपने इस खेल के गुल-गपाड़े में कि
बड़ी आसानी से उसमें छुप कर
हमारे खेल में शामिल हो जाती थीं वे लड़कियाँ
जिनके लिए हम खेलते थे छुपा-छुपौवल

पहली बार जब निकला होगा
उनमें से किसी का प्रेम बाहर
तब निश्चय ही वह कहीं
इस छुपा-छुपौवल में ही छुपा होगा

जीवन का जहाँ अब कोई रंग नहीं बचा
अपने ही चेहरे को देख कर
धोखा हो जाता है अपने
होने न होने का
वहाँ मन ही मन एक कोने में
टटका-सा रखा होता है
यह छुपा-छिपौवल,

उन्हें और कुछ याद हो न हो
लेकिन यह मैं दावे से कह सकता हूँ कि
जब भी वह यहाँ आती होगी
उन जगहों में दबी कोर से
देखना नहीं भूलती
जहाँ छुपती थी वह अपने
ढूँढ़े जाने के लिए,

आप छुपा-छुपौवल को लेकर
कुछ भी कहे लेकिन
प्रेम में लिखी दुनिया की यह
पहली इबारत है
जो अब भी उनके द्वारा
सबसे अधिक पढ़ी जाती है

इसमें हर बार ढूँढ़ लिए जाने पर भी
जान-बूझकर दाँव देते रहते हैं लोग
इस तरह हम पदने में लगे रहे
वह जाती रही एक के बाद एक
अब तो लगता है हमारी
पदने की आदत ही बन गई है
जबकि हमारे लिए छुपने वाला
कोई नहीं बचा है।


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