अभिनय (कविता)

वह आई
ससुराल से
सौ-सौ ज़ख़्म सीने में दबाए
अनगिनत शिकवा-शिकायतें लिए

पीहर में उसने
बीमार बाप देखे
मुरझाई माँ देखी
बेरोजगार भाई देखा
दरवाज़े पर साहूकार की धमकियाँ सुनीं...

आज वह जा रही है वापस
अपनी ससुराल
अपने चेहरे पर
जबरन मुस्कान बिखेरे


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