ऐ अतीत की घड़ियाँ! (कविता)

अधर न आओ, तड़प रहा हूँ
ऐ अतीत की घड़ियाँ!
इधर न आओ, छिन्न पड़ी हैं,
प्राणों की पंखुड़ियाँ!
मलिन-विषाद-तन-में पीड़ित
जीवन को खोने दो!
इधर न आओ, रोता हूँ
रोको न आज, रोने दो!

तीखी निरष्क्रिया मिलती है
दुखिया बेचारे को!
इधर न आओ, खोज रहा हूँ
आँसू में प्यारे को!

थिरकूँगा मैं आज तुम्हारे
तिरस्कार के तालों पर!
भर देना, वारूँगा जीवन
विष के तीखे प्यालों पर!
छोड़ूँगा ठुकराए जाने की भी
चाह इशारा पा!
पर दो अश्रु गिराने देना
वनमाली! वनमालों पर!

सुख पाओ, मेरे जीवन के
दीपक का करके अवसान!
देव! तुम्हारा मधुर व्यंग्य
मुझ पर होवेगा मधुवरदान!


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