अग्नि देश से आता हूँ मैं (गीत)

अग्नि देश से आता हूँ मैं!

झुलस गया तन, झुलस गया मन,
झुलस गया कवि-कोमल जीवन,
किंतु अग्नि वीणा पर अपने दग्ध कंठ से गाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!

स्वर्ण शुद्ध कर लाया जग में,
उसे लुटाता आया मग में,
दीनों का मैं वेश किए, पर दीन नहीं हूँ, दाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!

तुमने अपने कर फैलाए,
लेकिन देर बड़ी कर आए,
कंचन तो लुटा चुका, पथिक, अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!


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