‘हमारा सब कुछ चला गया!’
—रो उठा सर्वहारा!
बांग्ला देश के आगत एक जन
‘तुम्हारा सब कुछ चला गया?’
नहीं-नहीं-नहीं, कुछ भी नहीं गया
विश्वास करो, कुछ भी नहीं गया
विवेक तो बचा हुआ है न
—जानते हो न?
तब, सब कुछ है
नीति
मानते हो न?
तब, सब कुछ है
देश की ‘माँ’ के रूप में देखा है न?
तुम्हारा सब सुरक्षित है
जीवितों की तरह जीना चाहा था न?
तब, तुम्हें कौन मार सकता है?
अन्याय के दिव्य प्रतिवाद से ही जीवन जलता है
प्रलोभन को जीत लिया है—
और क्या चाहिए?
देश के लिए
प्राण देने को ही प्रस्तुत
तुम्हीं तो हो अग्रदूत—
फिर भी कहते हो—
‘सब कुछ चला गया हमारा!’
बोलो-बोलो
देश
माँ मेरी है—
हम हैं उसके सपूत
हम हैं अजेय
हम हैं अग्रदूत।
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