अकेला आदमी (कविता)

एक बंजारा रहे अकेला,
न थी उसको कोई फ़िकर।
बस करता था अपना काम,
न जाने उसको कोई इंसान।

कभी-कभी जब सोचे वो,
क्यों होता है मेरे साथ।
कभी किसी का ग़लत न सोचे
फिर भी लोग है उसको कोसे।

एक समय ऐसा आया,
समझ गए वें सारी बातें।
फिर रोया और हँस के बोला,
ये है अपना प्यारा भाई।


लेखन तिथि : 2012
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