अकेलापन (कविता)

अकेलापन एक खाई है
खुदी हुई मेरे घर के चारों ओर
जिसे बनाया है मेरे दोस्तों ने
मेरी इच्छा से

पहले उस पर एक पुल था
जिसकी नींव में जगी हुई थी
प्यार और विश्वास की मज़बूत ईंटें
उसे मैंने बनाया था

मैं बहुत निश्चिंतता से उसे पार करता था
और लौट आता था
रात होने के पहले

फिर कुछ ऐसा हुआ कि
मेरे सपने में आने लगा पुल
पानी की लहरों पर थरथराता हुआ
अपनी परछाईं की तरह और

एक लंबी चीख़ के बाद की
जड़ स्तब्धता ने भर दिया
मेरे एकांत को

मैं जागता था और काँपता था
मेरे घर की दीवारें काँपती थीं
मेरी डायरी में दुबके शब्द काँपते थे
वह पुल जो हमारी ज़रूरतों की
तरह ठोस था
खोखला हो रहा था धीरे-धीरे

उसके पार ‘शबो रोज़ होता था तमाशा'
दुम के साथ पिछाड़ी हिलाते आते थे जिसके पात्र
आँखें नीचे गिराए और
कतराकर उस पार ही रह जाते थे।


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